बुद्ध को आखरी छड़ में जब ज्ञान हुआ

बुद्ध को आखरी छड़ में जब ज्ञान हुआ

तो किसी ने पूछा तुम्हे क्या मिला ?

उन्होने कहा कुछ नहीं मिला जो मिला हुआ था बस उसका पता चल गया जो था वह मेरे ही पास था लेकीन मुझे पता ही नही था अब मैंने जान लिया जो चहिए था वह मेरे पास ही था !!

अपने ज्ञान में भी है गांव तो गांव थारी चौकी बैठी सत शब्द माही डेरा!!

विजय फूल साध सतनामी भी हमेशा इसी पर जोर देते है तुम्हारे  अंदर जो शब्द निरंतर हो रहा है उसे सुनो, देखो और अनुभव करो!!

युगों-युगों से एक हीं कर्ता का साधक

।मालिक की अपार दया महर।

युगों-युगों से एक हीं कर्ता का साधक(हुकमी) प्राणी सदैव तन के त्याग की आस करता हैं।


सृष्टिकर्ता से सदैव ऐसे किसब की सामर्थ्य पाने की विनती अरदास करता हैं कि कभी चौरासी में नहीं आवें।

प्राणी मात्र को सदैव सामर्थ्यवान हीं बनाया हैं मगर भूलवश सामर्थ्यता खोने के कारण पुनः सतगुरु ने सीख देकर अनंत उपकार किया हैं।

जिनने सतगुरु के किए उपकार को अंतर्दृष्टि से जान लिया उसकी बांह सतगुरु ने थाम ली कर्म भ्रम के जाल से मुक्त कर दिया।
धन हैं वो बिङले प्राणी  जिनने बिना किसी संकोच के जो कहा सो कर लिया।
भव से पार उतर गये।संसारिक      व्याधाओं से मुक्त हो गये।

बहुत भाँति के उपाय सांचे सतगुरु ने सीख सुनने और मानने के लिए किए हैं।

सतगुर शब्द सदा अति सुखदाई हैं। निरन्तर बिना किसी दोगाचिति के सदैव गुणगान करते रहें।

एक दिन देश (निज घर)और  परदेश (संसार सागर)का संपूर्ण निवारण स्वतः मिल जाएगा।
        ।सतनाम।

तुम स्वीकार कर लो जीवन जैसा है परमात्मा ने दिया है,

नानक कहते है , तुम स्वीकार कर लो जीवन जैसा है परमात्मा ने दिया है, वही जाने। तुम इंकार मत करो। दुःख आए तो दुःख को भी स्वीकार कर लो कि उसकी मर्जी। और अहोभाव रखो, धन्यभाव रखो कि अगर उसने दुःख दिया है तो जरुर कोई राज होगा, कोई अर्थ होगा, कोई रहस्य होगा। तुम शिकायत मत करो। तम धन्यवाद से ही भरे रहो।
जवानी की राख से शमशान भरे पड़े हैं और लोग कहते हैं बुढ़ापे में भक्ति करेंगे

 कबीर दास जी
सत् करतार के दिल से शरणागत होना सम्पूर्ण साधनों का सार है, उपदेशों का सार है; क्योंकि सत् करतार के दिल से शरणागत होने के समान दूसरा कोई सुगम, श्रेष्ठ, और शक्ति शाली साधन नहीं है ।

स्वाति की बूँदें

 अगर हमारा उद्देश्य सिद्ध होता हो तो प्रतिकूलता सहने में क्या हर्ज है ? रात भर गाड़ी में भीड़ के बीच खड़े रहें तो भी एक प्रसन्नता होती है कि घर तो पहुँच जायँगे !

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।

💥🪷🪷🪷 *सतनाम🪷🪷🪷💥 प्रश्न... एक बहन ने पूछा है, जब कोई मेरी बुराई करता है, तो मुझे बहुत दुख होता है, यह दुख कैसे हटे?... देखो भाई यदि कोई तुम्हारी बुराई करें तथा तुमसे बैर रखें तो उसको भूला हुआ जीव मानो, क्योंकि तुम्हारी बुराई तो तुम्हारे प्रारब्ध के बिना हो ही नहीं सकती; जो तुम्हारी बुराई कर रहा है, वह अपनी ही बुराई कर रहा है, अतः वह दया का पात्र है, उसे क्षमा करो, तथा मालिक से प्रार्थना करो कि वे उसकी बुद्धि को सुधार दें, तुम अपने मन में कभी भी बैर मत रखो, क्योंकि बैर सदा जलाने वाला होता है, उसी के कारण तुम दुखी होती हो, और बैर हमें महान दुखों में फंसता है और मरने के बाद नरको में भी ले जाता है, तो हमें बुराई करने वाले से दुखी नहीं होना है, बैर नहीं रखना है, उल्टे वह तुम्हारी सफाई कर रहा है, उसका भला मनाओ  कबीर साहब ने कहा है "निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।।" जो हमारी निंदा करता है वह हमको बिना पानी और बिना साबुन के हमारे स्वभाव को निर्मल कर रहा है, तो भाई बुराई करने वाले से दुखी मत होना, बल्कि उसका भला मनाओ वह हमारी सफाई कर रहा है... 

लोग मन को रोकने के लिए

साधक - संजीवनी

 मनुष्य को कभी भी ऐसा नहीं मानना चाहिये कि पुराने पापों के कारण मेरे से आध्यात्मिक पठन पाठन नहीं हो रहा है; क्योंकि पुराने पाप केवल प्रतिकूल परिस्थिति रूप फल देने के लिये होते हैं, आध्यात्मिक पठन पाठन में बाधा देने के लिये नहीं । प्रतिकूल *साधक - संजीवनी* 

 *साधक - संजीवनी* 

 जिनके भी ब्रह्म (आत्मा) का इस पांच तत्व की काया जिसको हम सब प्रायः शरीर की संज्ञा देते है इससे बिछोड होता है, वे अपने - अपने कर्मों के अनुसार ही ऊँच - नीच गतियों में जाते हैं, वे चाहे दिन में शरीर त्यागे, चाहे रात में; चाहे शुक्ल पक्ष में शरीर त्यागे, चाहे कृष्ण पक्ष में; चाहे उत्तरायण में शरीर त्यागे, चाहे दक्षिणायन में - इसका कोई नियम नहीं है ।
*कल्याण* *कारी* *प्रवचन* 

लोग मन को रोकने के लिए

बहुत मेहनत करते है, पर मन रुकता नहीं। मन को रोकना नहीं है। मन को न रोकना है और न चलाना है। मन जैसा है, वैसा ही छोड़ दो, उसकी उपेक्षा कर दो, उदासीन हो जाओ। फिर सकल्प-विकल्प आप से आप मिट जायेंगे। वे तो आप से आप हो मिट रहे हैं। जान वूझकर उनको मिटाने की आफत क्यो मोल लेते हो उनको मिटाने की चेष्टा करना ही उनको सन्ता देना है।